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तालिबान को तो पाकिस्तान ही कूट-काट देगा!

लिखा रेत पर
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हम भारतीय भी ना उलझे-उलझे से रहते हैं. इधर-उधर इतना कुछ घट जाता है, लेकिन हम इतने भोले हैं कि राजनैतिक पार्टियों के एजेंडे को अपनी अस्मिता का सवाल बना-बनाकर हैशटैग कर पुश करने में लगे रहते हैं. अभी पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नई अफगान नीति को लेकर सामने आये थे. इस नई नीति में जहां पाकिस्तान को अमेरिका से फटकार मिली थी, तो वहीं अमेरिका ने अफगानिस्तान में भारत से और मदद की मांग की थी. भारत की ओर से ट्रंप की नई अफगान नीति का स्वागत किया गया था.


trump


अमेरिका ने अपनी इस नई अफगान नीति में पाकिस्तान को मिलने वाली इमदाद (सहायता राशि) भी बंद करने की धमकी देते हुए कहा था कि पाकिस्तान अपनी आतंक की सुरक्षित पनाहगाह बंद करें. जिसके जवाब में पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने दबी जबान से ही सही लेकिन कहा था कि इमदाद सिमदाद तो अब आप वैसे भी नहीं देते, तो हम क्यों कार्रवाही करें? उनके इस जवाब का स्वागत वहां सदन में मौजूद सभी संसद सदस्यों ने मेज थप-थपाकर किया. हालाँकि, उनकी करीब 269 सदस्यों वाली नेशनल असेम्बली में से उस वक्त वहां सिर्फ 52 ही मौजूद थे.


इस बयान के बाद ख्वाजा आसिफ मानों पूरे पाकिस्तान की आँख का तारा बन गया और सत्ता-विपक्ष दोनों अमेरिका से कह रहे हों कि पाकिस्तान का 37 बिलियन डॉलर कर्जा उतार दो, तालिबान को हम ही कूट-काट देंगे.


मुख्य विपक्षी दल का नेता होने के नाते इमरान खान ने भी अमेरिका को आईना दिखाते हुए सरकारी और फौजी सुर में सुर में मिलाते हुए कहा “हम किसी दूसरे की लड़ाई अपने घर में नहीं लड़ेंगे.” दरअसल, अभी इमरान खान सत्ता में नहीं हैं, जब तक इन्सान पावर में नहीं आता तब वो कुछ भी बोल लेता है. राष्ट्रपति बनने से पहले ट्रम्प को ले लो या अपने देश में देखे तो एक नेता सत्ता में आने से पहले लोकपाल और व्यवस्था परिवर्तन कर रहा था. तो दूसरा चुपके से पाकिस्तान से दाऊद को उठा लाने की बात कर रहा था. हालाँकि, दूसरा चुपके से पाकिस्तान गया भी था, लेकिन दाऊद नहीं मिला क्या करें?


खैर, देखा जाये अभी तक पाकिस्तान ने अमेरिका से आतंकवाद से लड़ने के लिए ही साढ़े चौदह बिलियन डॉलर लिए हैं. उनमें से साढ़े चार बिलियन डॉलर उसने फौज को दिए बाकि 10 बिलियन का हिसाब-किताब जितना मेरे पास है उतना ही पाकिस्तान के पास है. मतलब खाया-पिया मुकर गया. अब अमेरिका को किस मुंह से समझाएं कि उसकी इमदाद से अच्छा और बुरा तालिबान दोनों पलते हैं.


अच्छे तालिबान को वो भारत और अफगानिस्तान से लड़ने के लिए खुद देते हैं और बुरा तालिबान खुद ले लेता है. सीधे सरकारी ठेकेदार के पास चिट्ठी आती है, बोला जनाब खैबरपख्तूनवा में बन रहा पुल उड़ाऊ या इमदाद दोगे? वजीरिस्तान में स्कूल उड़ाऊ या इमदाद दोंगे? मतलब पाकिस्तान के अन्दर जब अमेरिकी इमदाद का कद्दू कटता है तो सब में बंटता है.


अमेरिका ने कहा है पाकिस्तान हमसे इतने पैसे लेता है पर बदले में कुछ नहीं करता और भारत हमसे इतने पैसे कमाता है, लेकिन अफगनिस्तान में कम निवेश करता है. मसलन ट्रंप प्रशासन अपनी नई नीति के तहत चाहता है कि अफगानिस्तान में भारत की भागीदारी और बढ़े और यह भागीदारी आर्थिक के साथ-साथ सैन्य भागीदारी भी हो.


इसका मतलब कुछ इस तरह लिया जाये कि ये अधमरा सांप भारत के गले में डालकर चुपके से वहां से खिसक लिया जाये. पर उनकी आशाओं पर थोड़ा सा पानी उस वक्त फिर जब भारतीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत युद्ध प्रभावित अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और विकास कार्यों में मदद करना जारी रखेगा, लेकिन हम वहां कोई सैन्य सहयोग नहीं दे पाएंगे. भला बिना बात भारत क्यों फंसे कि लुगाई किसी और कि लड़ाई किसी और की, सिर फूडायें हम.


भारत के इस अमेरिकी प्रस्ताव को ठुकराने के बाद पाकिस्तान की मानों बांछे खिल गयीं. वहां के विदेश मंत्री को कतर, रूस और चाइना का दौरा करना था पर विमान को अमेरिका की तरफ मोड़ दिया और वहां जाकर स्वीकार करते हुए कहा कि हाँ पाकिस्तान में आतंकी हैं, पर वह हमारे नहीं है वो जनरल जियाउल हक और मुशर्रफ का लादा हुआ बोझ है, यदि कुछ इमदाद मदद मिल जाये तो हम ये बोझ आपके हवाले कर देंगे. वो क्या है कि (आई. एम. एफ.) के कर्जों और आतंकी दोनों का बोझ अब सहन नहीं होता. बात भी सही है, क्योंकि धार्मिक संगठनों की बोतल से ये जिन्न आसानी से निकल तो जाते हैं, लेकिन फिर अन्दर घुसाने की कीमत बड़ी चुकानी पड़ती है.


अब इत्ती सी बात से हाफिज सईद भड़क उठा और फटाफट “विदेश-ए-खारजा, ख्वाजा आसिफ” पर 10 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा ठोक दिया. मुझे भी ताज्जुब हुआ कि पाकिस्तान में आतंकियों का भी मान होता है? पर हाफिज को कौन समझाए कि उसके ऊपर 50 करोड़ का इनाम है. पाक सरकार उसे 50 करोड़ में बेचकर उसके मान हनन का 10 करोड़ चुकाकर भी 40 करोड़ कमा लेगी. और उन पैसों से पता नहीं कितने हाफिज खड़े हो जायेंगे?


अब जहाँ अमेरिका ने अपनी नई अफगान नीति में पाकिस्तान को एक बार फिर साझीदार बनाया है, तो पाकिस्तान ने भी अमेरिका को आश्वस्त किया है कि आप हमारे साथ हेलीकॉप्टरों में बैठकर चलें, जहाँ-जहाँ तालिबानी और हक्कानी नजर आयें मारों, पर जनाब ये (आई. एम. एफ.) के रोज-रोज के तकादों से पिच्छा छुड़ा दो.

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