Menu
blogid : 23771 postid : 1345921

तसलीमा तुम डर से डर गयी या भीड़ से..?

लिखा रेत पर
लिखा रेत पर
  • 79 Posts
  • 20 Comments

सच कहना, आलोचना करना या किसी विषय पर अपनी अलग हटकर राय रखना तो ऐसे हो गया है जैसे आपने भूखे भेड़ियों के झुण्ड में कंकर फेंक दिया हो। कुछ दिन पहले औरंगाबाद  हवाई अड्डे के बाहर कुछ मुसलमान “तस्लीमा गो बैक” के नारे लगा रहे थे। पुलिस ने किसी भी तरह की हिंसा की आशंका को देखते हुए तस्लीमा को हवाई अड्डे से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं दी और उन्हें वहीं से मुंबई वापस भेज दिया।

मैंने कहीं पढ़ा था कि जब भीड़ सड़कों पर सामूहिक हिंसा के ज़रिए आम इंसानों को डराने लगे और देश की संस्थाएं तमाशाई बनी बैठी रहें तो फिर ये लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए चिंता का विषय है। पर तस्लीमा तुम डरना मत, ये लोग डराकर ही जीना जानते हैं। तुम मुझसे उम्र और ज्ञान में बड़ी हो, तुमने बुद्ध का संदेश ज़रूर पढ़ा होगा कि जब तुम किसी की सदियों पुरानी धारणाओं को तोड़ते हो तो लोग तुम्हें आसानी से स्वीकार नहीं करते। वो पहले तुम्हारा उपहास उड़ायेंगे, फिर हिंसक होंगे और तुम्हारी उपेक्षा करेंगे। इसके बाद तुम्हें स्वीकार करेंगे। तुम अभी इन लोगों की धारणाओं को खंडित कर रही हो, लेकिन यकीन मानो एक दिन यह लोग तुम्हें ज़रूर स्वीकार करेंगे।

ये विरोध सिर्फ तुमने ही नहीं बल्कि हर उस इंसान ने भी झेला, जिनके पास कहने को कोई नई बात थी। तस्लीमा शायद तुमने भी पढ़ा होगा, यही लोग थे जिन्होंने कभी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) साहब पर कूड़ा फेंका था और उनका उपहास उड़ाया था। लेकिन बाद में हाथ से पत्थर गिरते गए और सजदे में सर झुकते चले गए।

तस्लीमा तुम्हें क्या बताना कि यही लोग थे जिन्होंने सुकरात को ज़हर का कटोरा थमा दिया था, जीसस को सूली पर चढ़ा दिया था। ज़्यादा दूर ना जाओ, यही लोग थे जिन्होंने नारी शिक्षा और धार्मिक आडम्बरों से मुक्त करने वाले स्वामी दयानन्द जैसे समाज सुधारक को ज़हर तक दिया था। बुद्ध के ऊपर थूकने की घटना और उस पर महात्मा बुद्ध का मुस्कुराना भी हमने इसी इतिहास में पढ़ा है।

“जो लोग तुम्हारी पुस्तक लज्जा से लज्जित नहीं हुए भला उन्हें कौन शर्म, हया का पाठ पढ़ा सकता है?”

तस्लीमा तुम्हें क्या बताना कि धर्म और नेकी अंदर होती है और नफरत और हिंसा बाहर से सिखाई जाती है, जो आज इन विरोध करने वालों को सिखाई गई है। तुम्हारे सवालों को लेकर बवाल मचाने वालों और इस बवाल का पोछा बनाकर आपनी राजनीति का फर्श चमकाने वालों से घबराना नहीं, क्योंकि हर नए पैगाम, हर नई बात, हर नए नज़रिए का ऐसे ही विरोध होता है। बड़ी सच्चाई विरोध के पन्ने पर ही तो लिखी जाती है।

मुझे दुःख है जो फैसले लोकतंत्र और संविधान लेता था आज उसे नफरत की विचारधारा लिए भीड़ और आवारातंत्र ले रहा है। मुझे इस कृत्य पर लज्जा आई पर तस्लीमा जो लोग तुम्हारी पुस्तक ‘लज्जा’ से लज्जित नहीं हुए भला उन्हें कौन शर्म, हया का पाठ पढ़ा सकता है?

जो लोग मज़हब और धर्म का शांति पाठ और लोकतंत्र में आज़ादी पढ़ा रहे हैं, क्या उनके लिए ये बात शर्म से डूब मरने की नहीं है कि 21वीं सदी में किसी इंसान को अपनी धार्मिक या सामाजिक विचारधारा के कारण हिंसक भीड़ के डर से अपनी जिंदगी छुपकर और गुमनामी में गुज़ारनी पड़े?

तस्लीमा तुमने वो कहानी तो ज़रूर सुनी होगी कि कभी प्राचीन येरुशलम में लोग इबादत और प्रार्थना के जोखिम से बचने के लिए हर कोई अपने-अपने पापों की एक छोटी गठरी बकरी के सींगों से बांधकर उसे ये सोचकर शहर से निकाल दिया जाता था कि हमारे पाप तो बकरी ले गई, अब हम फिर से पवित्र हो गए।

आज भी वही लोग हर जगह बसे हैं, बस आज बकरी उसे बना देते जो सच कह देता है। इसमें चाहे पाकिस्तान में तारिक फतेह हो, भारत से सलमान रुश्दी और एम. एफ हुसैन। शायद इस लिस्ट में बांग्लादेश के कथित ठेकेदारों ने देश से बाहर कर तुम्हें भी वही बकरी बना दिया, खासकर कि धार्मिक कट्टरपंथी लोगों ने।

एम.एफ. हुसैन को धर्मांध लोगों के कारण भागते रहना पड़ा, मगर हुसैन को किनके कारण भारत छोड़ना पड़ा? हुसैन को सताने वाले लोग, सलमान रुश्दी की मौत का फतवा जारी करने वालों से किस तरह अलग हैं? हुसैन की बेकदरी करने वाले, तुम्हें दरबदर करने वालों से किस तरह भिन्न हैं? ये धर्म की आड़ में लोगों का उत्पीड़न करने की कोशिश करते हैं। ये लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन नहीं रखते हैं।

पर देखना तस्लीमा एक दिन यह लोग तुम्हें भी उसी तरह स्वीकार करेंगे, जैसे तीस वर्ष तक फ्रॉयड की किताबों को आग में झोंकने वाले आज उनका गुणगान करते नहीं थकते हैं। हर जगह जब खुद पर बस नहीं चले तो सच लिखने, बोलने वालों को सब बुराईयों की जड़ बताकर अपनी जान छुड़ाना कितना आसान सा हो गया है ना तस्लीमा?

राजीव चौधरी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh