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राम का जन्म मस्जिद में हुआ था.?

लिखा रेत पर
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योगी आदित्यनाथ भारत के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर मनोनीत हो गये. हर एक फैसले की तरह इस फैसले से भी लोगों में खुशी और निराशा बराबर का माहौल है. लेकिन जो सबसे बड़ा सवाल है वो है कि क्या अब अयोध्या में राम मंदिर बनेगा? हालाँकि यह मुद्दा साम्प्रदायिक बताया जाता रहा है ऐसा मुद्दा जिसे सुप्रीम कोर्ट भी नेताओं के पाले में फेंक देती है. इस बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिपप्णी करते हुए कहा कि दोनों पक्ष मसले को बातचीत के जरिए सुलझाएं. कोर्ट ने कहा कि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है और संवेदनशील मसलों का हल आपसी बातचीत से हो.

कुल मिलाकर देश का राजनीतिक हालात ऐसा है कि सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले से अपनी दुरी बनाये रखना उचित समझ रही है क्योंकि भले ही यह मामला आम लोगों के आस्था का हो पर राजनितिक दलों के लिए यह मामला वोट के बिंदु को प्रभावित कर देखा जाता रहा है. आजाद होने के बाद भारत के संविधान में हर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई, यह बात भी तय हुई कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था  उसे ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाएगा. लेकिन बाबरी मस्जिद को इससे अलग रखा गया. यानी यह एक विवादास्पद स्थान जमीनी विवाद माना गया जिसका फैसला होना था कि इस पर किसका अधिकार है. हिंदुओं का दावा है कि भगवान राम का उसी स्थान पर जन्म हुआ था, जहाँ बाबरी मस्जिद बनी हुई थी. वहाँ एक मंदिर था जिसे बाबर ने ध्वस्त करा कर बाबरी मस्जिद बनवा दी. वैसे तो बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक का मामला तो सौ बरस से भी अधिक पुराना है. लेकिन यह अदालत पहुँचा 1949 में 23 दिसंबर जब सवेरे बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलने पर पाया गया कि उसके भीतर हिंदुओं के आराध्य देव राम के बाल रूप की मूर्ति रखी थी. इस जगह हिंदुओं के आराध्य राम की जन्मभूमि होने का दावा करने वाले हिन्दुओं ने कहा था कि रामलला यहाँ प्रकट यानि पैदा हुए हैं. लेकिन मुसलमान इस तर्क से सहमत नहीं थे और मामला कोर्ट में चला गया जमीन विवाद में उलझी अयोध्या रामजन्म भूमि ने अब मंदिर, मस्जिद विवाद का रूप ले लिया था.

खैर सविंधान की अवहेलना कर बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर 1992 को ध्वस्त कर दिया गया था. उसके बाद हर साल इस दिन बाबरी मस्जिद के समर्थक “काला दिन” और मंदिर समर्थक विजय दिवस के रूप मनाते आ रहे रहे हैं हालाँकि 500 साल पहले वहाँ क्या था और क्या नहीं था, ये तो पुरातत्वविद और इतिहासकार या फिर राम ही जाने, लेकिन पिछले 100 साल से बाबरी मस्जिद भारत में धर्म और नफरत की राजनीति की धुरी बन कर रह गई है. हिन्दू राम के प्रति आस्था को तो भारतीय मुसलमान जिनका बाबर से कोई तालुक्क दूर-दूर तक नहीं लेकिन एक जिद लेकर बैठे है. जबकि मुसलमानों का एक पढ़ा लिखा तबका समझता है कि जब भारत में इस्लाम का प्रवेश नहीं हुआ था तब तक यहाँ जरुर मंदिर ही रहा होगा और दूसरा इस्लाम में इबादत के लिए कोई विशेष स्थान जरूरी नहीं होता मसलन यदि कोई मस्जिद में इबादत के लिए घर से निकलता है यदि वो किसी कारण लेट हो जाये तो वह रास्ते में किसी चबूतरें, सड़क किनारें, बस, या ट्रेन भी नमाज अदा कर लेता है तो क्या वह जगह मस्जिद हो गयी? परन्तु पूजा के लिए निकला कोई हिन्दू मंदिर में ही पूजा करता है बीच रास्ते में नहीं. इस कारण बहुसंख्यक समुदाय की आस्था की कद्र करते हुए भी क्या मस्जिद दूसरी जगह नहीं बन सकती है!

बहराल बाबरी मस्जिद ध्वस्त की जा चुकी है लेकिन इसके मलबे में नफरत की राजनीति अब भी हो रही है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किसी एक मुद्दे ने ऐसी खाई और ऐसा मतभेद पैदा नहीं किया जैसा कि बाबरी-राम मंदिर के मुद्दे ने किया है. भारतीय गणराज्य बाबरी मलबे का अभी तक बंधक बना हुआ है. भारत एक उदार और संवैधानिक समाज है. देश का संविधान भारत की जनता की सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है. मौजूदा दौर में धर्मों पर किसी समूह संगठन या विशेष समुदाय एकाधिकार नहीं हो सकता. तिरुपति, ताजमहल और अयोध्या बिना किसी धार्मिक और सामुदायिक भेदभाव के प्रत्येक भारतीय की विरासत हैं. सदियों की कशमकश के बाद भारत एक बेहतर भविष्य की दहलीज पर है. सवा अरब भारतीय अतीत के मलबे के कब तक बंदी बने रहेंगे?

मेरा मानना है जब अयोध्या राम का जन्म स्थल है तो मुसलमानों को आगे बढ कर ये कहना चाहिए कि हां मंदिर बनाओ, तब ही मुसलमान एकता व भारतीयता का उदारता का सच्चा उदहारण दे पाएँगे. यदि एक मुसलमान की हैसियत से वो बाबरी मस्जिद का केस जीत भी जाएँगे तो तो मुझे कोई दुख भी नही होगा, अगर हार जाएँगे तो कोई खुशी नही होगी क्योंकि मजहब या धर्म का पहला सबक ही है इंसानियत, भाईचारा, देश ने इस छोटे से मुद्दे की कीमत बहुत बड़ी चुकाई है, अब बस करो जब नबी की भूमि संयुक्त अरब अमीरात जैसा इस्लामिक मुल्क मंदिर के लिए जमीन दे सकता है. तब हमारा तो इतिहास साझा पूर्वज साझे, संस्कृति और विरासत साझी सब कुछ साझा है तो आओ मंदिर और मस्जिद भी साझा कर पुरे विश्व को एकता उदारता का क्यों न परिचय दे! ताकि अगली बार जब जनसँख्या की गणना हो तो उसमे हिन्दू और मुस्लिम नहीं बल्कि इंसानों की गणना में हमारा नाम आये…राजीव चौधरी

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