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जाने कहाँ गया वो विपक्ष?

लिखा रेत पर
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यूपी चुनाव में नेता खुलेआम मंचों से बदजुबानी पर उतर आए हैं. कोई विरोधियों को आतंकवादी बता रहा है तो कोई सीधे-सीधे गालियां दे रहा है. लालू प्रसाद यादव ने सारी मर्यादाएं तोड़ दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जिन अपशब्दों का इस्तेमाल किया कोई जिम्मेदार समाचार पत्र छाप भी नहीं सकता यदि इसके बाद भी कोई कहे कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है तो उसे लालू का बयान सुन लेना चाहिए. या दो दिन पहले का वो न्यूज़ प्रोग्राम जब कांग्रेस के आलोक शर्मा भाजपा के संबित पात्रा को कहते है कि शब्दों पर लगाम रखिये वरना सारे दांत तोड़कर हाथ में दे दूंगा! क्या इसे भी अभिव्यक्ति की आजादी कहा जायेगा?

यदि आज इस देश की एकता अखंडता लोकतंत्र अभी भी जीवित है तो इसमें विपक्ष की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया सकता क्योंकि पहले सरकार कोई भी रही हो यदि कोई देश विरोधी स्वर फूटता तो विपक्ष हमेशा देश और सरकार के साथ खड़ा मिलता था. आज वो विपक्ष नहीं है. अब पता नहीं जाने कहाँ गया वो विपक्ष?

ये रिश्ता दो दिलो का. तेरा भी है मेरा भी है. मत गिरा इस घर को ये तेरा भी है मेरा भी है..

दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज विवाद के बाद सियासत गर्म हो गई है. छात्र राजनीति से शुरू मामले में केंद्रीय सरकार और कई बड़ी हस्तियां पक्ष और विपक्ष के तर्कों के साथ खड़ी हो गई हैं. गुरमोहर को सियासी मोहरा बनाकर तेरी, मेरी, इसकी, उसकी खूब हो रही है और इसके बाद रह-रहकर बयान आ रहे है कि अभिव्यक्ति की आजादी छिन्न गयी! यार प्रधानमंत्री तक को गाली गलोच कर रहे हो और कितनी आजादी चाहिए? कोई पैमाना, मापदंड, कोई इकाई सीमा कुछ तो बताओं?

सुना है सालों पहले मजहब के के नाम पर बना एक मुल्क जबान के सवाल पर दो-फाड़ हो गया था शायद आज हम बदजुबान के दौर से गुजर रहे है. दो फाड़ कब होगा पता नहीं!

पहले राष्ट्र हित से जुड़े मुद्दों पर विपक्ष सरकार पर भरोषा करता था और सरकार विपक्ष को भरोसे में लेती थी हमेशा सेना को राजनीति से दूर रखकर यह सब काम होता था, लेकिन आज विपक्ष बदल गया उसे राजनीति करने के लिए, गरीब, बेरोजगार, किसान, मजदुर और गधे घोड़े ना मिले तो वो देश के वीर जवानों की सहादत और कार्य शैली पर भी राजनीति कर लेते है. क्या सच में मेरा देश बदल रहा है?

कोई मुझे कह रहा था कि आजकल कांग्रेस मुस्लिम लीग की तरह व्यवहार कर रही है. इतना सुनकर बस मेरे मुंह से यही प्रार्थना निकली कि बस भगवान बीजेपी को कांग्रेस न बनने दे कहीं सत्ता के पांच मीटर सफेद कपडे की तरह यह लोग देश को न फाड़ डाले!!

कान में ऊँगली डालकर चींख रहे है भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जारी ऐसे नारे लगाने वालों को जब विपक्ष उत्साह वर्धन कर रहा है इसे अभिव्यक्ति की आजादी कहा जा रहा है तो राष्ट्रविरोध की नई परिभाषा मुझे जरुर बताई जाये?

में न एवीबीपी का समर्थन करता न आइसा और एनएसयूआई का कारण एक का पक्ष लेना दुसरे को अपराधी ठहराना. बस मेरा तो सवाल यह कि आज यह संगठन विचारों की विविधता के नाम पर क्यों अराजकता को बढ़ावा दे रहे है? कहीं ऐसा तो नहीं विद्यार्थी संगठन सिर्फ राजनेताओं के चमचे बनकर रह गये? मैंने पिछले साल कहीं पढ़ा था कि आखिर हम किन प्रतीकों को गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं? आखिर विचारों का कौन सा आयाम देश की संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को “गुरु” बनाने की बात कर सकता है? फिर ऐसा कौन सा तर्क है जो ‘मैं याकूब हूं, को सही साबित कर सकता हो? ऐसे प्रतीक गढ़कर आखिर हम कैसे राष्ट्र का निर्माण करना चाह रहे हैं जहां आतंकवादी को हीरो बनाया जा रहा है?

सियासत और मीडिया का मोहरा बनी गुरमोहर ने जिसका विरोध किया चलो माना की उसने गलत कदम उठाया हो पर इसका मतलब नहीं है कि दूसरा पक्ष बिल्कुल निर्दोष है. किन्तु जिस तरीके से वो गलत है. कानून तो एक पक्ष है कि दोषियों को चिन्हित कर उसे सजा दी जाए न किसी को ट्रोल करो न किसी पर छींटाकसी कि इसे पाकिस्तान भेजो उसे बांग्लादेश भेजो, ये गद्दार वो देशभक्त बस दोषियों को तिहाड़ भेजो, यधपि आज देश की आम जनता काफी समझदार हो चुकी है वह सरकार और विपक्ष दोनों किरदारों के अभिनय का सही से मूल्यांकन कर रही है. जब मीडिया का शोर थम जायेगा वो फिर तय करेगी है कि कौन से किरदार वास्तव में किस लायक हैं. विरोध और समर्थन विपक्ष का भविष्य लिखता है 2014 में शिकस्त खाया एक दल अभी फिर से अपना भाग्य लिख रहा है…

राजीव चौधरी

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