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वेलेंटाइन, इसमें हर्ज क्या है?

लिखा रेत पर
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कहते है रोम में तीसरी शताब्दी में सम्राट क्लॉडियस का शासन था, जिनके अनुसार अविवाहित पुरुष विवाहित पुरुषों की तुलना में ज्यादा अच्छे सैनिक बन सकते हैं. वेलेंटाइंस, जो एक पादरी थे ने इस क्रूर आदेश का विरोध किया. इन्होंने अनके सैनिकों और अधिकारियों के विवाह करवाए. जब सम्राट क्लॉडियस को इस बात का पता चला तो उन्होंने वेलेंटाइंस को फांसी पर चढ़वा दिया. इन्हीं  की याद में वेलेंटाइंस डे मनाया जाने लगा. यह चोरी छुपे प्रेम का विरोध था वैलेंटाइन ने तो खुल्लमखुल्ला प्यार का विरोध किया था. उन्होंने प्यार करनेवालों की बाकायदा शादियाँ करवाई थी!
अभी कोई बता रहा था वेलेंटाइन डे पर बजरंग दल वाले सोटा लिए घूम रहे है. कह रहे है कि यह वेलेंटाइन हमारा त्यौहार नहीं है. ये विदेशी संस्कृति है भला इसे हम क्यों मनाएं? बिलकुल सही बात है इनकी! यह हमारा त्यौहार नहीं है. हमारा त्यौहार तो अब आने वाला है अभी कुछ दिन ही दिन शेष बाकि है होली आने वाली है देशी दारू पीकर गोबर में लेटेंगे. एक दुसरे का सर फोड़ेंगे. ये वेलेंटाइन तो बकवास चीज है! एक साल में 365 दिन होते है अमूमन हर दिन हत्या, रेप, आतंकी घटना, ये रैली, वो धरना इसका शर्मनाक बयान, उसका निंदा करने लायक बयान चलता रहता है बस एक दिन दुनिया में प्रेम का दिन होता लेकिन मुझे लगता है संस्कृति के इन चिंतको को जितना प्रेम से डर लगता है उतना हिंसा से नहीं लगता क्योंकि मैंने कभी इन लोगों को हिंसा, रेप छेड़छाड़ के विरोध में सोटा लिए घूमते नहीं देखा!!
कहते है अश्लीलता है साहब पार्क में प्रेमी युगल बैठते है. मुझे नहीं पता इनकी अश्लीलता की परिभाषा क्या है? पार्क में हत्या हो जाये या सड़क पर झगड़ा, इसमें कोई अश्लीलता नहीं है हाँ यदि कोई किसी को प्रेमवश चुम्बन कर दे, पार्क में बैठकर एक दुसरे के कंधे पर सर रख दे तो जरुर अश्लीलता मानी जाती है. जिन लोगों को लगता है कि समाज में लोगों को प्यार करने की खुल्लमखुल्ला आजादी नहीं मिलनी चाहिए, इससे समाज में अराजकता फैलेगी हमारी संस्कृति का विनाश होगा…सुना है वे लोग इसका विरोध करते है. कहते है यह हमारा पाश्चात्यीकरण का विरोध है. यदि खुल्लमखुल्ला प्रेम का इजहार करना हमारी संस्कृति नहीं है तो खुल्लमखुल्ला हिंसा भी हमारी संस्कृति नहीं है यह लोग किसी को चाकू नहीं मार रहे बस प्रेम का इजहार कर रहे दो भावनाओं का मिलन है इसमें इतना शोर क्यों?
जो लोग कहते है यह विदेशी बाजार है उनसे मेरा सवाल है कि केवल इस विदेशी प्रेम दिवस का विरोध क्यों? टीवी भी विदेशी है और मोबाइल भी, 90 फीसदी देश में आने वाले हथियार भी विदेशी है और सोन्दर्य प्रसाधन का सामान भी मेट्रो ट्रेन भी विदेशी है और बुलेट ट्रेन भी. अपना तो स्वदेशी तांगा और बैलगाड़ी है चलो बैठते है उसमे क्यों विदेशी कार लिए घूम रहे हो? भारत में 99 फीसदी फिल्म प्रेम पर आधारित होती है यहाँ प्रेम के गीत संगीत सबसे ज्यादा बजते है भगवान कृष्ण की रासलीला सबसे ज्यादा धार्मिक गुरुओं द्वारा यहाँ गाई जाती है मीरा प्रेम दीवानी होती है भजन बनते है, लेला मजनू सोहणी महिवाल की कहानियाँ यहाँ सुनाई जाती है. प्रेम पर कविता सबसे ज्यादा यहाँ लिखी जाती है, मोहब्बत पर शेरो शायरी यहाँ होती है इस सबके बाद हर किसी के पास गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रैंड है फिर भी प्रेम दिवस का विरोध होता है. क्यों?
बजरंग दल हो या कोई अन्य संस्था देश के लिए कोई काम करें न करें लेकिन प्रेमी जोड़ों पर नजर रखना, उनकी पिटाई करना, मुंह पर कालिख पोतना, डंडे चलाने जैसे काम करने में इन्हें बहुत आनंद मिलता है. और जब से लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने लगे ये लोग वहां भी पूरी शिद्दत से अपना ज्ञान बांट रहे हैं. भले ही इन्हें खुद पता हो न हो कि भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फांसी किस दिन हुई लेकिन दुनिया को यही सिखा रहे हैं कि 14 फरवरी को भारत के इन शूरवीरों को फांसी दी गई, इसलिए हमें वैलेंनटाइन डे नहीं मनाना है. जबकि सब जानते है सरदार भगतसिंह राजगुरु सुखदेव हमारे दिलों में न कि हमारे त्योहारों में इस तरह के तर्को से इन वीरों का बाजारीकरण नहीं करना चाहिए. इन वीरों को राजनीति में नहीं घसीटना चाहिए.
अभी राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर देखा आसाराम बापू के भक्तों ने दिल्ली के मेट्रो स्टेशन को भी नहीं छोड़ा. वहां भी होर्डिंग और पोस्टर लगाए गए हैं  और इस बात को समझाया जा रहा है कि 14 फरवरी को “माता पिता पूजन दिवस” मनाएं. इनका कहना है कि बच्चों को अच्छे संस्कार दें. आसाराम बापू जो खुद रेप के मामले में जेल में बंद हैं वो भी संस्कार और संस्कृति सिखा रहा है. यानी अब वैलेंटायन डे पर केवल इनका राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित होना ही शेष है. हालाँकि युवाओं को भी समझना चाहिए वास्तव में, वैलेंटाइन डे का असली मतलब था, यूरोप की ‘लीव इन रीलेशनशिप’ का विरोध और भारत की ‘शादी’ जैसी पवित्र संस्था का समर्थन! यहां सबसे खास बात है इन प्रेम विरोधी संस्थाओं को यह बात समझनी चाहिए कि किसी पार्क में प्रेमी जोड़ों का नजर आना कोई नई बात है? अगर ये सबकुछ रोज हो रहा है, तो फिर एक दिन वेलेंटाइन डे के नाम पर इतना बवाल क्यों? इस बात को जायज नहीं ठहराया जा सकता कि कोई किसी निजी खुशियों में दखल दे. प्रेम दुनिया का सबसे अच्छा शांत वातावरण है जिसमें दो दिलों का दो जज्बातों का आपसी समर्थन होता है आखिर इन लोगों को मर्ज क्या है यह लोग प्रेम का भी विरोध करते है और रेप का भी एक विरोध जायज हो सकता है दोनों नहीं जब दुनिया को प्रेम के मौके नहीं मिलेंगे तो रेप जरुर होंगे. इस समय जहाँ पूरी दुनिया इर्ष्या, क्रोध बदले की भावना में आतंक के साये में जी रही इस समय तो हर रोज एक वेलेंटाइन डे होना चाहिए इसमें हर्ज क्या है?  राजीव चौधरी

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