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हमें गर्व होता है न?

लिखा रेत पर
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कल पूरा भारत “एक देश, एक सपना, एक पहचान के रंग में रंगा दिख रहा था. परेड दस्ते राष्ट्रगान की मनमोहक धुन के साथ राजपथ से हर भारतीय को गौरव का अहसास कराते हुए अपने कर्तव्य की अग्रसर हो रहे थे. गौरवान्वित पलो के साथ एक समय भावुक पल भी आया जब असम राइफल्स के वीर जवान हंगपन दादा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी पत्नी ने जब अपने आंसू पोछे तब अचानक मेरा भी अन्तस् छलक आया. मुझे गर्व के साथ यह एहसास भी हुआ कि हम भारतीय चाहें मन में लाख लालसा रखे. किन्तु एक दुसरे के सुख-दुःख को कितना करीब से महसूस करते है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई देश पर कोई विपदा आये तो एक दुसरे का हाथ पकडकर खड़े हो जाते है. शायद यही चीजें हमें देश पर गर्व कराती है, शायद यही चीजें इस देश को महान बनाती है.

मन में यही अहसास लिए में फेसबुक पर चला गया पर मुझे तब शर्म आई जब किसी ने लिखा कि इस बार  फलानी-फलानी रेजिमेंट का दस्ता शामिल नहीं किया गया यह देखो मोदी का छल. शायद वह किसी पार्टी का कार्यकर्ता था. जो अपना मानसिक कचरा सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर फेंक रहा था. अच्छा जब हम लोग देश की एकता पर गर्व करते है तो शायद तब हमें शर्म भी आनी चाहिए कि हम छोटी बातों में देश बाँट लेते है

हमें गर्व होता है न जब पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से एक लड़की ओलिंपिक में पहली बार जिम्नास्टिक्स में प्रवेश हासिल कर देश का नाम ऊँचा करती है? लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए तब मणिपुर की ही कुछ छात्राओं से ताजमहल देखने पर भारत की राष्ट्रीयता का प्रमाण माँगा जाता है.

हमे गर्व होता है न जब आईआईटी के पूर्व प्रोफ़ेसर आलोक सागर शिक्षण कार्य छोड़कर आदिवासियों के विकास के लिए काम करना शुरू कर देते है? लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए तब आईआईटी से ही निकला कोई व्यक्ति अपनी राजनेतिक महत्वाकांक्षी के लिए देश को जन सेवा के नाम पर जाति धर्म में बाँटने लग जाता है.

हमें गर्व होता है तब विश्व कप विजेता भारतीय दृष्टिबाधित क्रिकेट टीम के कप्तान शेखर नाइक को भी पद्मश्री से सम्मानित किया जाता है? लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हजारों दृष्टिबाधित लोगों को अँधा कहकर मजाक उड़ाया जाता है.

हमे गर्व होता है तब तमिलनाडु के 21 साल के मरियप्पन रियो पैरालंपिक्स 2016 में हालात से लड़कर गोल्ड जीत लाता है? लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हजारों तंदरुस्त लोग एक कुप्रथा को जीवित रखने के मरीना बीच पर लड़ने मरने के लिए खड़े हो जाते है.

हमें गर्व होता है जब एक गरीब प्रदेश में एक सैफई महोत्सव के नाम पर करोड़ो रुपया लुटाया जाता है? लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए तब मीडिया से जुड़े कुछ लोग गणतन्त्र दिवस परेड का खर्चा जोड़ने लग जाते है.

हमें गर्व होता है न जब देश की एक मूकबधिर लड़की गीता पाकिस्तान से सकुशल वापिस लौट आती है पर हमे शर्म भी आनी चाहिए जब लाखों बेटियों को परम्परा के नाम पर जबरन मूक रखा जाता है

हमें गर्व होता है तब देश की बेटियां ओलम्पिक में देश के लिए पदक बटोरकर आती है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हम गूगल पर उनकी जाति तलाश करने लग जाते है.

हमें गर्व होता है न जब एक इस्लामिक देश की सबसे ऊँची बिल्डिग बुर्ज खलीफा तिरंगे से नहा जाती है पर हमे शर्म भी आनी चाहिए जब देश के कोने में कुछ धार्मिक स्कूल  तिरंगे से भी महरूम रह जाते है ..

हमें गर्व होता है जब हम पढ़ते है कि कैसे अनेक रियासतों में बंटे देश को सरदार पटेल ने एक सूत्र में पिरोया था लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए तब हम राजनीति के लिए देश को जाति धर्म और क्षेत्र में बाँटने बैठ जाते है.

हमें गर्व होता जबी सीमा पर देश की रक्षा करते हुए दुश्मनों से लड़ते हुए जवान शहीद हो जाते है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हम उन सैनिको पर ऊँगली उठाकर अपनी राजनीति चमकाते है

हमें गर्व होता है जब अरुणाचल प्रदेश के नौजवान तवांग में चीन की छाती पर तिरंगा फहराते है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हम दिल्ली में उनका चाइनीज कहकर मजाक उड़ाते है.

हमें गर्व होता है जब देश के अन्दर सुविधाओं से भरपूर कोई नई ट्रेन चलाई जाती है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हम उस ट्रेन से नल और शीशे उतारकर ले जाते है.

हमे गर्व होता है जब हम देश में कोई साफ़ सुथरा स्थान पाते है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब हम कहीं साफ़ सुथरे स्थान पर गंदगी फैलाते है….

हमें गर्व होता है जब एक नेता के मरणोपरांत अर्थी को कन्धा देने लाखों लोग जुट जाते है लेकिन हमें शर्म भी आनी चाहिए जब कोई आदिवासी अकेला अपनी मृतक पत्नी का शव कई किलोमीटर कंधे पर ढोकर लाता है.

हम अक्सर सोशल मीडिया पर अपने विचार रखते है एक दुसरे से संस्कृति साझा करते है यह एक अच्छा प्लेटफार्म है एक दुसरे से जुड़ने का. पर मुझे नहीं लगता कि इसका सिर्फ सदुपयोग हो रहा है…राजीव चौधरी

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