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युद्ध कोई ग़दर फिल्म नहीं, कि तारा सिंह अकेला जायेगा और नल उखाड़कर ले आएगा..

लिखा रेत पर
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मुझे नहीं पता यह युद्ध का जूनून कहाँ से हावी हुआ, जिसे देखो वही युद्ध करने की सलाह दे रहा है. जिसमें शामिल होकर एक बड़ा वर्ग, समाज से लेकर सोशल मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में आर-पार की बात कर रहा है. जबकि ये खुद के द्वारा खुद को खुश करने वाली बात हो रही है. असल में ऐसा नहीं चाहिए. जो लोग युद्ध की मांग कर  रहे हैं, उनकी मांग पर सरकार को सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिए. न की पिछली सरकारों की तरह राष्ट्र को अँधेरे  में रखे. भारत और पाकिस्तान दोनों नाभकीय अस्त्रों से लेस देश है, और दोनों ही देश के लोग अभी नाभकीय त्रासदी से अनभिज्ञ है. यह कोई गदर फिल्म नहीं है कि अकेला तारा सिंह पाकिस्तान जायेगा. नल उखाड़कर ले आएगा. और 130 करोड़ भारतीय बैठकर ताली बजाकर इसका मजा लेंगे! जंग में मानवीय और आर्थिक त्रासदी होती है. थाली में रोटी की जगह खून के छींटे ना हो यह भी सोच लेना चाहिए? कि हम कोई नरभक्षी नहीं है. युद्ध द्वारा जापान का हाल सबको पता है. 100 साल की जंग लड़कर लाखों लोगों को मरवाकर आज यूरोप शांति, आर्थिक और सामाजिक प्रगति की बात कर रहा है. हो सकता है वो युद्ध की हानि समझते हो, जबकि भारत और पाकिस्तान आज भी कश्मीर और बलूचिस्तान को लिए बैठे है, जिसमें यूरोपीय देशों की कोई दिलचस्पी नहीं है. यदि दिलचस्पी है भी तो सिर्फ इसलिए इसमें कौनसे देश को क्या हथियार बेचा जाये ताकि उनके आर्थिक हित सध जाये.

हो सकता है इस लेख को पढ़कर कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी लोग इस पर कायर और देशद्रोह का ठप्पा लगायें पर मैं बता दूँ हर एक चीज को देखने का हर किसी का अपना एक नजरिया होता है. कोई व्यापारिक नजरिये से देखता है, तो कोई धार्मिक और मानवतावादी नजरिये से देखता है. किसी को दर्शन का नजरिया अच्छा लगता है, तो किसी को बम बारूद और सेना का. इसका मतलब यह नहीं कि किसी से किसी का नजरिया नहीं मिलता तो वो गद्दार या देशभक्त हो गया! मीडिया बता रही है कि उडी हमले के बाद देश का खून उबाल पर है. बिलकुल है, पर मेरे नजरिये से ये एक किस्म का पागलपन उबालपर है. क्योंकि युद्ध किसी भी स्थिति से निपटने के बहुविकल्पीय समाधानों में से एक अंतिम समाधान होता है, “न की पहला और आखिरी.” परन्तु जिस तरीके से सत्ता आसीन पार्टी के नेताओं के बयान आ रहे है वो भी कहीं न कहीं इस आग में घी डालने ला काम कर रहे है.

पिछले कई दिनों से मीडिया में खबरें आ रही थी कि “उडी हमले के बाद रूस ने पाकिस्तान के साथ युद्धभ्यास करने से मना किया.” जिसका कई बड़े न्यूज चैनलों ने भी समर्थन किया. जबकि असल सच यह है कि रूस के 200 सौ सैनिक पाकिस्तान में युद्धभ्यास के लिए पहुँच चुके है. जिसमें रूस द्वारा पहले ही भारत को आश्वासन दिया गया था कि भारत और पाकिस्तान के किसी भी विवादित इलाके में यह युद्धभ्यास नहीं होगा. दरअसल सोशल मीडिया पर तो झूठ की बाढ़ सी आई है यहाँ तो हर कोई झूठ के बहाव में फंसा सा दिखाई दे रहा है. लेकिन साथ ही कहीं न कहीं  यह भी लग रहा कि जिम्मेदार पत्रकार और मीडिया भी, “सोशल मीडिया” से ही कंटेंट उठाकर खबर प्रसारित कर रहे है! हो सकता है यह टीआरपी के लिए हो. पिछले दो दिनों से प्रसारित एक खबर देख लीजिये जिसको पता नहीं किसने जारी किया. कि “पीओके में घुसकर सेना की कार्रवाही 20 आतंकी मारे गये 200 घायल.” इस प्रकार के झूठ बंद होने चाहिए देश तो गुमराह होता ही है साथ ही में पत्रकारिता के पेशे को यह सब शोभा नहीं देता. उलटा विश्व मीडिया में भी देश की पत्रकारिता पर प्रश्नचिंह लग जाता है.

सब जानते है चुनाव से पहले नरेन्द्र मोदी ने बहुत बड़े-बड़े भाषण दिए थे. जिनमे पाकिस्तान और चीन को सबक सिखाने तक की बात कही गयी थी. शायद आज वही भाषण पार्टी के गले की फांस बनते दिखाई दे रहे है. जबकि वो सिर्फ चुनाव जीतने का जुमला भर था. वरना विदेश नीति, कूटनीति बम बन्दूको की बजाय समझदारी से चलती है. उसमें देश के आर्थिक, सामाजिक हित एवं सामरिक क्षमता देखी जाती है. यह बात भी देश की कुछेक जनता और बीजेपी के उन नेताओं को समझ लेनी चाहिए, जो जबान से दिन में कई बार पाकिस्तान को तबाह करने के बात दोहराते है. 20 सैनिको की कायरतापूर्ण हत्या होने का दुःख हर किसी को है. कारवाही होने का समर्थन भी होना चाहिए. पर क्या और कैसे! किस मोर्चे पर होनी चाहिए! यह बात सरकार के ऊपर देश की जनता को छोड़ देनी चाहिए. ना की हर रोज पुराने भाषणों के आधार पर सरकार को ताने उलाहने देकर किसी भी बिना सोची समझी कारवाही के लिए उकसाना चाहिए. और सत्ताधारी दल को भी कारवाही की सीमा को ध्यानपूर्वक देखकर, देश की सामरिक क्षमता को देखकर बयान देने चाहिए. उम्मीद है अगले लोकसभा चुनाव प्रचार में वर्तमान सरकार इस तरह के बड़े बयानों से परहेज करें.

उडी हमले के बाद सिंधू जल परवाह को रोकने की बात हर कोई कर रहा है. हो सकता है इससे पाकिस्तान पर दबाव बने कि वो अपने यहाँ फलते-फूलते आतंक पर कुछ लगाम लगाने को बाध्य हो, पर इसमें प्रश्न यह है कि पानी की धारा रोकने वाले यह भी जरुर बताएं की ऐसा कौनसा बर्तन देश के पास है, जिसमे उस पानी को डाला जाये? क्योकि अभी तक तो हम अपने देश की अन्य नदियों का पानी ही सम्हालने में नाकामयाब से दिखते है. जिसकी कीमत बाढ़ के रूप में हर वर्ष लाखों लोगों को बेघर कर हम चुकाते है. बयानों से पानी का बहाव नहीं रुकता. भारत को अब बहुत दिन हो गये अपनी उदारवादी छवि का दिग्दर्शन विश्व के सामने प्रस्तुत करते-करते. जिसे दुश्मनों द्वारा हमारी कायरता समझा जाने लगा है. अब इस छवि से बाहर आने का समय है. हमें इजराइल की तरह पहले रक्षात्मक होने की जरूरत है इसके बाद ही आक्रामकता शोभा देती है. ये सोचकर चलना होगा कि दुश्मन हमारे रक्त का प्यासा है हमें अपनी सीमाएं मजबूत कर सजग होना चाहिए ताकि इसके बाद यदि कोई सीमा का उलन्घन करें तो उसे वहीं सबक सिखाया जा सके ना कि सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर बेकार की अफवाह फैलाकर. हम उम्मीद करते सरकार जो भी फैसला लेगी वो देश हित में होगा न की अपने पूर्व बयानों की रक्षा के लिए..   राजीव चौधरी

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