Menu
blogid : 23771 postid : 1253639

खामोश! दो देश हथियार बेच रहे है

लिखा रेत पर
लिखा रेत पर
  • 79 Posts
  • 20 Comments

वॉशिंगटन से रिश्ते बिगड़ने के बाद पाकिस्तान हथियारों के लिए मॉस्को की तरफ देख रहा है. पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक दोनों देशों के 200 सैनिक इस साल के अंत में होने वाले युद्धाभ्यास में हिस्सा लेंगे. शीत युद्ध के समय सोवियत संघ और पाकिस्तान एक दूसरे के दुश्मन थे, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं. हाल ही में अमेरिकी सांसदों ने पाकिस्तान को अत्याधुनिक एफ-16 लड़ाकू विमान बेचने से मना कर दिया. पाकिस्तान अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन से 8 एफ-16 विमान खरीदना चाहता था. अमेरिका से सौदे से इनकार के बाद इस्लामाबाद जॉर्डन से यह विमान खरीदने की कोशिश कर रहा है.वॉशिंगटन के कड़े रुख के चलते अब पाकिस्तान अमेरिका विरोधी धड़े रूस की तरफ बढ़ रहा है.दक्षिण एशिया की राजनीति में यह बड़ा बदलाव है. बीते डेढ़ दशकों में भारत और अमेरिका के संबंध नई ऊंचाइयों पर पहुंचे हैं. लंबे अरसे तक सिर्फ रूस से हथियार खरीदने वाला भारत अब अमेरिका, इस्राएल और दूसरे पश्चिमी देशों से भी बड़े पैमाने पर हथियार खरीद रहा है. उपरोक्त दोनों खबरों से सिद्ध हुआ कि दो देश भारी मात्रा हथियार खरीद रहे है तो दो देश हथियार बेच रहे है.

सब जानते है आज मिडिल ईस्ट पूरा तबाह हो गया है. अब वहां कुछ नहीं बचा. वे लोग अब हथियार के बजाय रोटी मांगने लगे, तो दोनों देश रूस और अमेरिका ने सीरिया में आपसी समझोता कर लिया. कि चलो अब दक्षिण एशिया में चलते है उनके हाथ से भी निवाला छीनकर हथियार थमाए, हालाँकि जब में सीरिया के बारे में सोचता हूँ तो समझ ही नहीं पाता कौन किसके साथ था. कारण अमरीका असद सरकार के खिलाफ था. और आतंकी संगठन (आई एस) भी असद सरकार के खिलाफ है. रूस असद के पक्ष में है और आई एस के खिलाफ है. जब रूस आई.एस पर बम बरसा रहा था तो अमेरिका नाराज था जबकि अमेरिका (आई एस) को तबाह करने की कसम लिए बैठा था! मतलब अमेरिका अपने हथियार (आई एस) को तो  रूस असद को बेच रहा था. कुछ लोग इसे अमेरिका की दोगली नीति कहते है पर में इसे कृष्ण नीति कह सकता हूँ कि एक तरफ मेरी नारायणी सेना और दूसरी तरफ में खड़ा हूँ. खैर अनंत काल से पृथ्वी पर राज करने की लड़ाई जारी है करोड़ो साल पहले यहाँ डायनासोरों का राज था पर कालचक्र के आगे वो ना चल पाए और आखिर उनका अंत हुआ फिर धीरे-धीरे मानव आया और शुरू हुई मुकाबले की एक ऐसी आंधी जिसने सभ्यता का उदय और अंत देखा. कभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष बदले तो कभी भूगोल. कभी धर्म-संस्कृति के ऊपर युद्ध हुआ तो कभी सीमा और सम्मान के ऊपर. आज फिर पूरा विश्व चीन के अहंकार और इस्लाम की कट्टरता पर एक दुसरें से लड़ने को तैयार सा होता दिखाई दे रहा है.

अब खबर है कि रक्षा संबंधों को नई ऊंचाई देते हुए अमेरिका भारत को कई तकनीकों तक लाइसेंस मुक्त पहुंच देगा. भारत और अमेरिका साझा उपक्रमों के जरिए रक्षा तकनीक का विकास करेंगे. दोनों देश समुद्र, हवा और हथियार सिस्टम का साझा विकास करेंगे. देखा जाये तो आज भारत और अमेरिका के बीच बहुत तेजी से समझोते हो रहे जैसे शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान और अमेरिका के बीच हुए थे. और इन समझोते में सबसे बड़ी बात यह होती है कि समझोते चाहें भारत करें या पाकिस्तान शिक्षा, स्वास्थ, कृषि जो हमारी मूलभूत बड़ी जरूरत है से दूर अधिकांश समझोते युद्धक सामग्री के लिए होते है शायद इसी कारण अभी यूएनओ की एक रिपोर्ट आई है कि प्राथमिक शिक्षा के मामले में पाकिस्तान यूरोपीय देशों से 60 साल तो भारत 50 साल पीछे है. लेकिन हथियारों के मामले में दोनों देश विश्व में बहुत ऊँचा स्थान लिए है. आज भले ही एशिया के इन दोनों देशों के पास पुरे विश्व से लड़ने के हथियार हो पर इनकी सामाजिक दशा गरीबी, भुखमरी, जातिगत भेदभाव, और गंभीर बिमारियों से झुझते लोग भी किसी से छिपे नहीं है. आजादी के 69 साल बीत जाने पर भी आज तक दोनों देशों की सरकारें सभी नागरिकों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ और भोजन देने में असफल रही है अन्य बुनयादी सुविधा जैसे यातायात आदि की तो बात ही छोड़ दे बहरहाल ये बहस फिर कभी होगी अभी तो सिर्फ इतना है कि अमेरिका अपना साजोसामान लेकर दक्षिण चीन सागर में बसे देशों की ओर आता दिखाई दे रहा है. जहाँ चीन धोखेबाज देशों की श्रेणी में वहीं 20 वर्षो तक वियतनाम और लाओस जैसे छोटे मोटे देशों को तबाह करने वाला अमेरिका ईरान-इराक युद्ध में अपनी दोहरी भूमिका उजागर होने के बाद से आज भी भले ही ताकतवर हो पर विश्व में एक अविश्वसनीय साथी समझा जाता है. इसलिए उसने भारत को चुना जो आजादी के बाद से एक गुटनिरपेक्ष और उदारवादी देश के तौर पर देखा जाता है. ईरान का चाबहार बंदरगाह हो या भारत को (MTCR) में शामिल करा वियतनाम और अन्य पूर्वी देशों को मिसाइल व् अन्य हथियार भारत के माध्यम से बेच सकता है. दिखावे को चीन और अमेरिका बड़े दुश्मन है पर दोनों सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार भी है. जबकि भारत और पाकिस्तान सिर्फ इनके हथियारों के ग्राहक. अब रूस और पाकिस्तान के रक्षा संबंधों का असर मॉस्को और नई दिल्ली के रिश्तों पर भी दिखाई पड़ेगा. शीत युद्ध के समय अमेरिका और भारत एक दूसरे के विरोधी थे, लेकिन आज वे दोस्त बन गए हैं, वहीं पाकिस्तान और रूस की शत्रुता भी अब मित्रता में बदल रही है. साझेदार भले ही बदल जाएं लेकिन दक्षिण एशिया में हथियार खरीदने और बेचने की होड़ खत्म नहीं हो रही है…राजीव चौधरी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh