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घटनाएँ तो अतीत में भी होती रही है और आगे भी होती रहेगी सिर्फ नाम और चेहरे बदलेंगे. संदीप कुमार ने यहाँ कोई कोई बड़ा पाप नहीं किया कि इसे राष्ट्रीय आत्मग्लानी कहा जाये और न ही इसे कोई अच्छा कार्य कहकर इसकी प्रशंसा की जाये. हाँ ये जरुर है कि इतिहास से इसकी तुलना कर कानून से बचा नहीं जा सकता! यह एक राजनैतिक बेशर्मी थी इसकी निंदा होनी चाहिए| सबने पढ़े होंगे वो होर्डिन पोस्टर जिसमे टोपी और झाड़ू के ऊपर लिखा होता था कुछ भी गलत हो तो वीडियो बना लो, हमें भेज दो हम उसे जेल भेजेंगे. बहरहाल संदीप कुमार एक दिन की पुलिस रिमांड पर है. इस पूरे प्रकरण में यदि गौर करने लायक कुछ है तो आशुतोष का ब्लॉग जिसे लिखते लिखते वो नेता से दार्शनिक बन गये और किस तरह महिला कल्याण मंत्री के कार्य को अतीत के कुछ नेताओं से जोड़कर इसे देश कल्याण तक बताने के कोशिस कर रहे है. पर अफ़सोस वो देश के इतिहास में ज्यादा अन्दर तक नहीं जा पाए और सोशल मीडिया पर पड़ा माल गांधी, नेहरु के ऊपर दे मारा. प्रजातन्त्र मे चर्चा, आलोचना और समालोचना का अधिकार सबको है. सत्तारूढ़ पक्ष के कार्यों की उचित आलोचना, उसको आईना दिखाने का काम होना ही चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय सफ़ेद झूठ का सहारा लेना या किसी पर शक के आधार पर आरोप लगाना बिलकुल उचित नहीं है. किसी भी देश की संस्कृति उस देश के बुजुर्गो, पूर्वजो और महापुरुषों के इर्दगिर्द घुमती है जिनसे हम सीखते और फिर उस संस्कृति को अगली पीढ़ी के हाथों में सोपते है| जाहिर सी बात यदि हम उस संस्कृति के मूल्यों में कुछ नया न जोड पाए तो भी हमें ये भी अधिकार नहीं है कि हम अपने सामाजिक व् राजनैतिक स्वार्थ के लिए उसे खंडित कर अगली पीढ़ी के ऊपर थोफ कर भाग जाये.
खैर मेरे एक ब्लॉग लिखने से कौनसा राजनीति दूज तीज के चाँद की तरह बिना धब्बों के चमक उठेगी. देश के लोग सुधर जायेंगे बल्कि उल्टा उस दिन से कई लोगों ने सोशल मीडिया पर मुझे मेसेज कर पूछा कि वो सीडी आपने भी देखी क्या? मैंने नहीं देखी पर आशुतोष का ब्लॉग पढ़ा था जिससे साफ जाहिर होता है कि उनके मंत्री जी जरुर किसी महिला के साथ उस अवस्था में थे जिसे भारतीय समाज बिना किसी रिश्ते के अनैतिक कहता है| असल में आशुतोष जो लिखना चाह रहे थे वो ना लिख पाए उनका ब्लॉग पढ़कर लग रहा था जैसे वो कहना चाह रहे थे कि है जब अटल जी कुवांरे होकर ब्रह्मचारी नहीं रहे गाँधी इतना सब कुछ कर भी बापू है नेहरु एडविना से बेपनाह प्यार कर चाचा है तो हमारा भी राजनैतिक दल है हम भी नेता है तो यह छुट हमे भी मिलनी चाहिए. जब उनके लिए मानक नहीं तो हमारे रास्ते में रूकावट क्यों? या फिर ये कहना चाहते हो नेता तो यही करते है इसमें शर्म संकोच या रूकावट नहीं होना चाहिए गाँधी नेहरु ने देश की आजादी के नाम पर मस्ती लुटी हम महिलाओं की आजादी के नाम पर कर रहे है. अर्थात संदीप कुमार निर्दोष है और भारतीय दलों को नतमस्तक होना चाहिए कि संदीप ने इस पुरातन राजनैतिक परम्परा को जीवित रखा. इस पुरे ब्लॉग में शुक्र यह रहा कि गाँधी नेहरु अटल की तरह आशुतोष ने अपने मंत्री के लिए भारत रत्न की मांग नहीं की.
आशुतोष कहते है आज ये वर्जनाएं पश्चिम देशों में टूट चुकी है यदि कोई लड़की शादी से पहले बहुत सारे शारारिक सम्बन्ध स्थापित नहीं करती तो वो समाज की दौड़ में पीछे रह जाती है| शायद हमारी सभ्यता और संस्कृति में इस तरह की बात एक बेहद ओछी हरकत कहा जायेगा. आशुतोष बता सकते है कि क्या आज एक महिला सिर्फ यौन सम्बन्ध के स्थापना का केंद्र बनकर ही रह गयी है? उसका वजूद यही तक सिमित रह गया है कि वो बस कभी बलात्कारियों तो कभी नेताओं का शिकार बने या उसे आजादी का पहाडा पढ़ा उसे शोषण की भूमि बना दे? क्या वो समाज की दौड़ पदक जीतकर, डाक्टर बनकर, संगीत, या आई,एस पीसीएस अफसर बनकर या फिर देश की राजनीति का हिस्सा बनकर यह दौड़ नहीं जीत सकती? ऐसा नहीं है कि सिर्फ आशुतोष ही ऐसे नेता है समय-समय पर राजनीति के अन्दर से ऐसी मानसिकता के नेता लगभग सभी पार्टियों में देखे गये है|
केजरीवाल पिछले कुछ सालों पहले देश के नौजवानों के लिए एक आशा बनकर उभरे थे कि देश अरविन्द के जरिये एक नैतिकता के मूल्यों में बंध जायेगा भ्रष्टाचार काला बाजारी बंद होने के साथ इस राजनीति के खेल में अरविन्द पारंपरिक वर्तमान राजनीति को चुनौती देंगे और पुराने खिलाडि़यों को नई वास्तविकताओं के साथ खड़ा कर देंगे| किन्तु हाल ही में अरविन्द और उसकी टीम द्वारा राजनैतिक व् सामाजिक मूल्यों की उडती धज्जियों के देखकर शायद एक फिर आज का युवा खुद को विकल्पहीन होकर निराशा के रास्ते पर लिए खड़ा है| हो सकता है कल लोग संदीप कुमार का नाम भूल जाये आशुतोष गुजरे जमाने की चीज हो जाये लेकिन लोग शायद ये बात नहीं भूलेंगे कि नेता तो यार ऐसे ही होते आज वर्तमान परिद्रश्य मेंराजनैतिक पार्टियों के शीर्ष नेता स्वयं एक दूसरों पर कीचड़ उछालने मे व्यस्त हैं। इनकी जबान से जनता की जरूरते उनके मुद्दे गायब हो चुके है अपनी महत्वकांक्ष| सर्वोपरी हो गयी चाहे उसके लिए किसी भी हद तक जाना पड़े आज अल्पसंख्यक और दलित दो मुद्दे ऐसे हो गये है कि इनसे जुड़कर या किसी को जोड़कर नेता समाज में एक विघटन पैदा कर रहे है जैसे अभी सब ने देखा अपने कुकर्म पर पकडे जाने के बाद संदीप कुमार ने कहा कि में दलित हूँ इस वजह से मुझे फंसाया जा रहा है ये राजनीति में समाज को तोड़ने वाला एक गन्दा चलन बन गया है कि कई बार अपराधी का बचाव दलित या अल्पसंख्यक बताकर किया जाने लगा है. लोगों को ऐसे नेताओं को तिरस्कार करना चाहिए तभी राजनीति स्वस्थ होगी तभी देश स्वस्थ होगा…राजीव चौधरी
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