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कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रेणुका चौधरी से पत्रकारों ने बुलंदशहर गैंगरेप के बारे में सवाल किया तो उन्होंने कहा कि रेप तो चलते ही रहते हैं। उनका कहना है कि हम इस स्थिति से परेशान हो गए हैं। हर रोज सुबह उठने के बाद कोई ना कोई कहीं ना कहीं बलात्कार के बारे में बात जरुर करता है। हमें अब आगे के बारे में सोचना चाहिए। भले ही कुछ लोगों ने उनके इस बयान की निंदा, भर्त्सना की हो परन्तु उनका ये बयान कहीं न कहीं सच्चाई के करीब है| किन्तु अच्छा होता यदि वे यह बयान संवेदनशीलता के दायरे में देती न कि इस सवेंदनशील मुद्दा का राजनैतिक स्वर में उपहास उड़ाती|
दरअसल रेप बीमारी नहीं है, ये तो लक्षण है| जो वर्तमान में दिन पर दिन समाज में देखे जा रहे है| अगर इन लक्षणों पर ठीक तरह से खोज की जाये तो इनके बहुत सारे रूप है| इसके लिए ज्यादा गहराई में जाने की भी जरूरत नहीं है ऊपर से ही साफ नजर आते है| मसलन एक रेप तो वो होता है जिसमें एक गरीब एक मजदुर की पत्नी या बेटी होती है| जिनकी रिपोर्ट भी थाने तक नहीं आ पाती| यह रेप शरीर और गरीबी दोनों के साथ होता है| दूसरा- पारिवारिक रिश्तों के अन्दर जहाँ अपराधी काम वासना के अधीन होकर सामाजिक व् नैतिक मर्यादाओं का उलन्घन कर रिश्तों को तार-तार करता है| इसमें भी अधिकतर मामले सामाजिक प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए दबा दिए जाते है| तीसरा- एक झुग्गी झोपडी में रहने वाला नशा कर 20 रूपये में मोबाइल पर पोर्न देखता है, पहले वासना उसकी थ्योरी में होता है इसके बाद उसे प्रक्टिकल में परवाह नहीं रहती चाहे उसका शिकार कोई भी हो कोई घरेलू महिला या फिर गली में खेलती कोई मासूम बच्ची ही क्यों ना हो!
इसके बाद थोडा ऊपर चले तो किसी मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत एक महिला जो अपनी महत्वकांक्षी जीवन के लिए अपने से बड़े अधिकारी से पद की लालसा में या फिर विवाह आदि की चाहत रख प्रेम जाल में फंसकर सम्बन्ध बना लेती है| किन्तु कई बार मनोरथ अधुरा रहने पर वो रेप बन जाता है| ऐसे अधिकांश मामले आप लिव इन रिलेशनशिप में भी देख सकते है| या फिर कई बार सहयोगी महिला को नशा आदि करा कर भी अंजाम दिया जाता है| पांचवा -ग्लेमरस की दुनिया का जिसे चकाचोंध फिल्मी सितारों, कलाकारों की दुनिया कहा जाता है, जहाँ से सारी आवाजे पर्दे के आगे से आती है उसके पीछे का सच कभी-कभी समाचार पत्रों चैनलों में देखने को मिलता है| जैसा अभी मई माह की घटना ही ले लो जब एक पीड़ित मॉडल ने आरोप लगाया था कि अल्ताफ मर्चेंट नाम के एक प्रोड्यूसर ने काम देने के बहाने पहले तो उसे ड्रग्स की लत डाली गई। फिर उसके साथ रेप किया । यही नहीं एक रेप होता है जो पुरे परिवार के सामने बुलंदशहर हाइवे पर हुआ| एक रेप होता है विदेश से भारत आई यहाँ की संस्कृति के दर्शन करने विदेशी युवती के साथ| एक रेप बापू आसाराम करता है, दूसरा रेप रामसिंह और कई लोग मिलकर दामिनी, निर्भया का करते है| एक रेप जिसमें कई बार अपराधी पकडे जाने के भय से पीडिता की हत्या तक कर जाता है| बलात्कार के अनगिनत रूप है, और हर एक बलात्कार में अंतर| बलात्कारियों की अनगिनत चेहरे है, तो कैसे किस आधार पर आशा की जा सकती है कि भारत रेप फ्री हो जायेगा?
हाल ही में अमिताभ बच्चन अपनी अपकमिंग फिल्म ‘पिंक’ के ट्रेलर रिलीज के मौके पर कहा कि भारत रेप से फ्री होना चाहिए। उन्होंने अपनी फिल्म के बारे में बताते हुए कहा कि शूजित सरकार की फिल्म ‘पिंक’ रेप पीड़ित महिलाओं को लाचार कानून व्यवस्था के कारण होने वाली मानसिक पीड़ा को असरदार तरीक़े से सामने लाएगी। आमतौर पर हमेशा इसी तर्क को सामने रखकर बल दिया जा रहा है कि कड़े कानून लागू होने से देश रेप फ्री हो जायेगा| जबकि यह सब सुनने तक ही सही लगता है| हाँ यदि ऐसा हो जाये तो कुछ प्रतिशत मामलों गिरावट आ सकती है पर बिलकुल रेप फ्री हो जाना सिर के बाल से दीवार में छेद करने जैसा है| क्योकि इसी देश में दहेज के ऊपर कड़े कानून प्रभावी है, लेकिन क्या दहेज लेन-देन बंद हुआ? दहेज हत्या या विवाहित नारी का शोषण होना बंद हो गया? शायद नहीं! क्योकि महिला समाज के द्वारा ही दहेज के कानून का जो दुरपयोग हुआ वो भी किसी से छिपा नहीं है| बिन अपराध न जाने कितने परिवार जेलों में सजा भुगत रहे है| ठीक इसी तरह कहीं रेप के सख्त कानून का फायदा ना उठाया जाये शायद सरकार डरती है| अक्सर पड़ोसी के साथ झगड़ा चाहे गली में नाली को लेकर हो पर कपडे फाड़कर थाने में जाकर इसी देश की नारी रेप की धमकी देती नजर आती है| इस कारण भी समाज में रेप के प्रति संवेदनशीलता में कमी महसूस की गयी है| हाँ यदि झूठे मामले दर्ज कराने में महिलाओं के लिए कोई कानून बने तो कुछ हद तक आशा की जा सकती है |
कई बार हमारा समाज सच से भागता सा दिखाई देता है| रेप वासना का प्रयोगात्मक क्रम है| हमेशा से हमारे पास चरित्र मापने के सारे मापदंड यौनअंगो से जुड़े है| यदि उसने यौन सम्बन्ध स्थापित नही किये तो चरित्रवान वरना चरित्रहीन| हमने चरित्र की असली परिभाषा मिटा दी और नकली परिभाषा स्त्री के अंगो से जोड़ दी| हमारे पास सती सावित्री जैसी महिलाओं के हजारों किस्से है| जिन महिलाओं को जलाकर मारा जाता है बलात्कार कर हत्या कर दी जाती है, जिनके चेहरे पर तेजाब डालकर झुलसा दिया जाता है उनकी कहानी हम किताबों तक नहीं आने देते| हमारे पास नारी के कुंवारेपन की बड़ी कीमत है, उसके लिए प्रेम गीत है, कविता है ना जाने कितने शब्दों से उसे अलंकृत करते आ रहे| उसके उन अंगो को जिनसे वो प्रकृति निर्माण में सहयोग करती है, अपने दैनिक क्रिया कर्म करती है उन्हें संगीत से सजा दिया| जिस कारण आज वह आकर्षक दिखना चाहती किन्तु आक्रमण नहीं चाहती| हमने अपनी कविताओं में उसे शब्दों के जाल से नंगा किया| हमने हजारों साल से दुष्यंत और शकुन्तला के मिलन के कामुक किस्से सुना-सुना कर समाज को क्या दिया? क्या वह रेप नहीं था? दुष्यंत ने शारारिक सम्बन्ध बना शकुंतला का त्याग किया वो विरह वेदना बताई गयी लेकिन आज की शकुन्तला विरह के गीत नहीं गाती वो सीधा आज के दुष्यंत रेप का मुकदमा दायर करती नजर आती है|..राजीव चौधरी
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