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राह से भटका एक समुदाय ..

लिखा रेत पर
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सारी दुनिया के सामने सबसे बड़ा और कठिन प्रश्न यही है कि इस्लाम का प्रतिनिधित्व कहाँ से और कौन करता है? शायद इस प्रश्न का उत्तर किसी भी मुसलमान के लिए तलाशना मुश्किल सा हो जाता है, क्योकि कोई सऊदी अरब से समझता है, कोई मक्का से या कोई काबा से, तो कोई भारतीय जैसा सीधा साधा सा मुस्लिम दिल्ली की शाही जामा मस्जिद, जाकिर नायक या ओवेशी तक ही समझकर रह जाता है| लेकिन इसका सही उत्तर तलाशना थोडा मुश्किल हो जाता है| कहते है इस्लाम का जन्म अरब की रेतीली जमीन पर भले ही हुआ था पर पर इसका फैलाव हरी भरी धरा तक हुआ| हजरत मुहम्मद की शिक्षाओं का लोगों पर कुछ ऐसा असर हुआ कि बहुत जल्द पूरा अरबी प्रायदीप एक मत एक ध्वज के नीचे आ गया| किन्तु हजरत की मृत्यु के बाद उनका कहो या इस्लाम का उत्तराधिकारी बनने के लिए इस्लाम दो धडो शिया- सुन्नी में बंट गया| क्योकि पहली बार इतना बड़ा साम्राज्य एक ध्वज के नीचे आया था और हजरत अली मुहमद के दामाद की सन 661 में हत्या कर दी गई इसके बाद अली के बेटे हुसैन की हत्या 680 में कर्बला में कर दी गई| मतलब की इस्लाम की शिक्षाओं के फैलाव कहो या खलीफा बनने के लिए जंग शुरू हो गयी जो अभी तक थमती सी दिखाई नहीं दे रही है|

अभी हाल ही में मदीना शहर जो की इस्लाम के सबसे पवित्र शहरों में से एक शहर है जिसमें मस्जिद-ए-नबवी को इस्लाम में 3 सबसे पवित्र जगहों में से एक माना जाता है | उस पर हमला कर दिया गया हालाँकि ये हमला पहली बार नहीं हुआ| सन 1800 के आस-पास मक्का मदीना में वहाबीयों ने लूटमार की थी| 1925, में हजरत मोहम्मद साहब का मकबरा तौड़ने की कोशिश की गयी थी| ऐसे अनेक उदहारण इस्लाम के इतिहास में मिल जायेंगे जिनकी वजह से आज अरब में पैदा हुआ इस्लाम आज अरब के कारण ही शर्मिदा सा होता दिखाई दे रहा है| मुस्लिम लेखिका तसलीमा नसरीन की माने तो अल्लाह हूँ अकबर जो कभी इस्लाम की शान का नारा था आज समस्त विश्व के सामने एक खोफ का नारा बन चूका है| किन्तु फिर भी पुरे विश्व के सामने इस्लाम की सच्ची शिक्षा यदि कहीं बची है तो भारतीय मुसलमान के दिल में है| कई साल पहले की बात है मै गाँव में था हमारे घर के पास एक मुस्लिम करमूदीन का घर था| जो तांगा चलाता था एक दिन सुबह पडोस की एक हिन्दू बुढिया सीढियों से फिसल गयी जिसे लेकर डॉक्टर के यहाँ जाना था| करमु अपना तांगा निकाल लाया, इतने में अचानक जमात आ गयी जो शायद इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए आई थी| वो करमू को इस्लाम की शिक्षा का सन्देश देने लगे लेकिन करमू ने उन्हें नजरंदाज कर पहले बुढियां को अस्पताल ले जाना मुनासिब समझा| जमात झल्लाकर रह गयी पर अनपढ़ करमु तब तक पढ़े लिखे मोलवियों को धता बताकर अपना तांगा ले इस्लाम के सच्चे आदर्श स्थापित करने निकल चूका था| आज भी इस देश में ना जाने कितने करमू है जो हर रोज कहीं ना कहीं इस्लाम के सच्चे आदर्श प्रस्तुत करते है|

कहने का अर्थ है आज पूरा इस्लामिक तंत्र पाकिस्तान से लेकर सोमलिया तक नाईजीरिया से लेकर अरब तक इस्लाम को पेश करने में असफल रहा| इस्लाम के सच्चे आदर्श स्थापित करने के बजाय उल्टा इस्लामिक कानून थोपने को तत्पर रहा जिसके लिए हर एक इस्लामिक मुल्क में हिंसा, आगजनी, कत्लेआम का बोलबाला रहा ना कहीं लोकतंत्र दिखाई देता ना समानता के अवसर और ना समाजवाद| बस दिखता है तो इस्लाम के नाम पर खून और कहीं हरे रंग के तो कहीं काले रंग के झंडे| पिछले साल रमजान महीने में अरब देशों में इस्लाम के नाम पर सैंकड़ो हत्याएं हुई थी| तब टयूनिशिया के प्रधानमऩ्त्री हबीब अल रसीद ने 80 मस्जिदों को ये कहकर बंद कर दिया कि ये मस्जिदें देश में जहर बांट रही है| ठीक उसी तरह ही अबकी बार भी यही हुआ हुआ और तीन सौ ज्यादा हत्याएं अभी तक रमजान माह में हो चुकी है| जबकि इसका उल्टा देखे तो भारत में हर साल रमजान माह में सर्वधर्म के बीच इफ्तारी दावत होती है लोग हंसी ख़ुशी अपना काम भी करते और रोजे भी रखते है| अब ये समय की मांग है इस्लाम को लेकर पूरा इस्लामिक जगत फ़ैल हुआ अब इस्लाम का नेतृत्व भारत के मुसलमान के हाथ में दे| पूरा विश्व जानता है भारतीय मुस्लिम उर्दू को जितना सम्मान देता है उतना ही हिंदी समेत अन्य भाषाओं को भी देता है, उसके अन्दर मजहबी भाषाई भेदभाव नहीं है, ना पहनावे की दीवार| विवाह की बात करें तो चाचा ताऊ के बीच यदि समानांतर विवाह प्रणाली जिसे मुस्लिम समुदाय की विशेषता कहा जाता है का अनुपालन भी थोडा बहुत मुस्लिम समुदाय की करता है| वास्तव में यदि देखा जाये तो सामाजिक व्यवहार में भी वो अपने धार्मिक कानूनों को ही जीवन शैली का हिस्सा मानकर ना खुद पर लागू करने की जिद करता ना किसी पर थोपता| ना किसी को चाचा, ताऊ राम-राम करने के अभिवादन से उसका धर्म डोलता ना उसके इमान पर प्रश्नचिन्ह बनता| वो वालेकुम अस्सलाम देता है तो नमस्ते भी लेता है,वो पडोस की हिन्दू बेटी की शादी में कन्यादान भी करता है और अपनी बेटी की शादी में हिन्दू पड़ोसी से आशीर्वाद भी दिलाता है| उसके लिए जरूरी नहीं कि वो ईद पर इस्लामिक परिधान ही पहनकर निकले| नहीं बुजुर्ग कुरता पायजामा और नोजवान जींस टीशर्ट में पूरी श्रद्धा से ईद मनाता है एवं जब तक दुसरे धर्म के दोस्तों को दावत ना दे तो उसका त्यौहार फीका रहता है| यदि अब इस्लाम कहीं पाक बचा है तो भारतीय मुस्लिम के दिल में बचा है| उसकी असली जन्नत इस देश की मिटटी तो उसका कानून भारत का संविधान है फिल्म अभिनेता इरफ़ान खान ने सही फ़रमाया था कि मुझे ख़ुशी है मैं एक ऐसे देश में रहता हूँ जहाँ मुल्ला मौलवियों के फरमान नही देश का संविधान चलता है| शायद भारत का मुसलमान जानता है कि इस्लाम का प्रतिनिधित्व मस्जिदों के इमाम और मदरसों के मौलवी नहीं करते बल्कि अपने खुद के मुस्सलम इमान, अपने दिल से होता है| राजीव चौधरी

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