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रिश्तों में अनबन,साजिश या नासमझी?

लिखा रेत पर
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पति पत्नी के रिश्तों में झगड़ों की वजह कुछ भी हो सकती है, किसी भी तरह की असहमति, असंतोष या शक या फिर किसी की साजिश कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है नतीजा कई बार यह झगड़े बहुत बुरा रूप भी ले लेते हैं इतना बुरा रूप कि अपराध को भी जन्म दे देते है| अक्सर झगड़ों की शुरुआत बहस से होती है और उसका सीधा असर होता है रिश्ते पर। यहाँ से जन्म होता नकारात्मकता का जो रिश्तों के महकते फूलों से भावनाओं की पंखुरियों को तोड़ डालती है| एक दुसरे की बात पर ध्यान दीजिये, आप खुद को कितना भी अच्छा क्यों न समझते हो पर ईमानदारी का झगडा वहीं होता है जहाँ दोनों को बोलने का मौका बराबर मिले| मसलन कि एक दुसरे से सहमत नहीं हो तो उस विषय पर  बहस करो, पर हर बात में नारी के  तन और चरित्र को गाली न दें! आज बदलते आधुनिक परिवेश में बहुत कुछ बदल चूका है, अब पहले कि तरह नहीं रहा कि खुद पर अत्याचार हिंसा के बावजूद भी महिलाएं रिश्ते बचाती रहे| आज वो आसानी से सीधे शब्दों में कह देती है जाओ भाड में अब में साथ नहीं रह सकती कारण अब पिता और पति की पहचान के अलावा आज उसने अपनी पहचान बनानी सीख ली है|

यदि कोई स्त्री या पुरुष किसी भावनात्मक सनकी इंसान के साथ हों तो कई बार आपका रिश्तें के अन्दर दम घुटता दिखाई देगा क्योकि प्यार और भावनात्मक ब्लैकमेल के इस खेल में इनसे कोई नहीं जीत सकता| ऐसे समय में, खुद को याद दिलाइये कि यह झगड़ा आपके एक बहुत ज़रूरी मीठे रिश्तें में एक छोटा सा किस्सा है, इसलिए अगर एक दुसरे की आलोचना भी करें तो सहज ढंग से, ताकि रिश्तें में ज़िन्दगी भर के लिए कोई दरार ना आ जाये। अक्सर झगड़े की शुरुवात एक दुसरे की आलोचना से होती है, मसलन पसंद नापसंद, एक दुसरे के कपडे पहनने का तरीका, मेकअप, आदि। जिसे शुरुआत में लोग इतनी गंभीरता से नहीं समझ पाते कि ये प्यार और परवाह है या एक दुसरे का नीचा दिखाना  की भावना| हमेशा पति पत्नी के बीच रिश्तें में एक पति की  सोच अधिकांश यही रहती कि अपनी पत्नी उसकी निजी सम्पत्ति है उसके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाये ये उसका जन्मसिद्ध अधिकार है| मानसिक, भावनात्मक और शारारिक रूप से पत्नी केवल उस पर निर्भर रहे। इन हालात में कई बार महिलाएं मन ही मन अपनी खुद की पहचान टटोलती सी रह जाती है और खुद को समझाती रहती है कि षायद ये सब वो त्याग और समझौते हैं जो एक रिश्तें को चलाने के लिए ज़रूरी होते हैं।

एक पुरुष लिए सबसे अच्छा यह है कि साथ मारपीट या गाली गलोच न करें। झगड़ा शुरू करने से पहले, कुछ पल रूककर सोचना चाहिए कि आपके पास झगडा करने की कोई सही वजह है भी या नहीं। अगर आप अपने साथी पर हाथ उठाएंगे तो हो सकता है वो अपनी हार मानले लेकिन इसका कारण सिर्फ डर होगा। अक्सर लोग झगडे में सिर्फ वो बातें कहते है जिससे एक दुसरे को दुःख होता है या गुस्सा आता है सोच कर देखिये की अगर आपको नीचा दिखाए तो आपको कैसा महसूस होगा? दूसरी बात अभी कुछ रोज पहले मैंने रात में अपने एक पड़ोसी को झगडे में चिल्लाते हुए सुना कि उनकी अपनी पत्नी के साथ सेक्स की रूचि ज़्यादा है जितनी रिश्तें की शुरुवात में थी। वो छूने का छेड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था  किन्तु उसकी पत्नी का कहना था,  “नहीं आज नहीं, आज मेरे पेट में या सिर में दर्द है।“ इससे स्पष्ठ होता है कि यौन संबंधो में मिली निराशा भी कई बार झगड़े का रूप ले सकती है| ऐसे मामलों में अक्सर ये आरोप लगते कि कोई दूसरा मिल गया होगा अब मेरी क्या जरूरत ऐसा नहीं है कि आरोप सिर्फ पुरुष लगाये कई बार किसी कारण यदि पति भी यौन सम्बन्ध बनाने से मना करता है तो कुछ पत्नियों का भी यही आरोप होता है| इसलिए यौन सम्बन्ध से कौन कितना संतुष्ट है आपसी व्यवहार देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है|

कई बार जब रिश्तों में तलाक अलगाव आदि पर शोर मचता है जिसे समाज में भी बुरे तरीके से देखा जाता रहा है| हालाँकि ऐसा नहीं है जहाँ यदि शादी पति पत्नी के रिश्तें का प्रवेश द्वार है तो तलाक निकास का द्वार है मतलब आप रिश्तों में खुश नहीं है आपकी सोच किसी हद तक नहीं भी मिलती तो उसमे हिंसा या जबरदस्ती क्यों? द्वार है न आपके पास निकल जाइये! सच  भी है कि जीवन में नकारात्मक महसूस करवाने वाली किसी भी चीज़ को तुरंत निकाल फेंकना चाहिए। क्यूंकि हिंसात्मक हरकतों से बच्चों और समाज में हमेशा गलत सन्देश  जाता है| इसलिए जहाँ तक हो सके एक दुसरे को बिना तकलीफ पहुंचाए एक दुसरे के होटों की मुस्कान से लेकर तनाव की रेखाओं पर भी ध्यान देना चाहिए रिश्तों में पानी बनिये जो आसानी से हर रिश्तें में घुल जाये हमेशा  सोचना चाहिए कि हम एक दुसरे के साथी बनकर जिन्दगी जी रहे ना एक दुसरे पर बोझ बनकर| मैं ही समझदार हूँ में ही अच्छा हूँ अपना अहंकार रिश्तों से अलग रखिये फिर देखना आप समाज के लिए प्रेरणा बनकर जी उठेंगे|….Rajeev choudhary

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